समाज और हम
मनुष्य और समाज शरीर और उसके अंगो के सामान है. दोनों परस्पर पूरक है दोनों में आपसी सहयोग परमावय्श्यक है. मनुष्य की समाज के प्रति एक नैतिक जिम्मेदारी है, जिसके बिना समाज सुवयावस्थित नहीं रह सकता.
समाज में पारस्परिक सहानभूति प्रेमभावना उदारता सेवा एवं संगठन की भावनाए अत्यंत आव्यश्यक है. इन्ही से समाज का विकास संभव है. समाज में व्यक्ति का सबसे बड़ा दायित्व परमार्थ है. समाज के जरूरतमंद एवं निराश्रित व्यक्तियों की सेवा ही व्यक्ति का एक महान दायित्व है.
समाज में पारस्परिक सहानभूति प्रेमभावना उदारता सेवा एवं संगठन की भावनाए अत्यंत आव्यश्यक है. इन्ही से समाज का विकास संभव है. समाज में व्यक्ति का सबसे बड़ा दायित्व परमार्थ है. समाज के जरूरतमंद एवं निराश्रित व्यक्तियों की सेवा ही व्यक्ति का एक महान दायित्व है.